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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 3 



आशा ने "दिव्या" नाम से "साहित्यिक एप"  में आई‌ डी बनवाई थी । इसलिए वह "साहित्यिक एप"  पर दिव्या के नाम से ही जानी जाती थी । वह लिखने के बजाय पढने की शौकीन ज्यादा थी । रोज एक विषय "साहित्यिक एप"  पर दिया जाता था जिस पर बहुत सारे लेखकगण अपनी कविताएं , कहानियां , लेख , दोहे , मुक्तक , गजल हास्यव्यंग्य  वगैरह लिखते थे । कुछ लेखक दिये गये विषय से इतर भी लिखते थे । आशा का मन उन रचनाओं में रमने लगा । बहुत सारी कहानियों में प्रताड़ित महिलाओं के दुख , उनकी भावनाओं के बारे में लिखा जाता था तो उसे कुछ सुकून सा मिलता था जैसे कि कोई उसके बारे में लिख रहा हो । बहुत सारे लेखकों को वह फ़ॉलो कर चुकी थी । कुछ कहानियों में ऐसी महिलाओं का वर्णन था कि किस तरह उन्होंने प्रेम में धोखा खाकर भी अपने आप को संवारा, संभाला और एक नया मुकाम हासिल किया । इन रचनाओं से उसे प्रेरणा मिलती थी अपने गम भूलकर आगे बढ़ने की ।


एक दिन वह प्रतिलिपि में कुछ नोटिफिकेशन देख रही थी कि अचानक एक शीर्षक पर निगाह पड़ी "चलो, थोड़ा हंस लें" । उसे लगा कि इस कोरोना महामारी के खौफ में जहां सब लोग डर के मारे थर थर कांप रहे हैं तब ये कौन‌ महाशय हैं जिन्हें हास्य सूझ रहा है ? उसकख कौतूहल जागा और उसने लेखक का नाम पढ़ा तो वहां लिखा हुआ था लव कुमार । वह मन ही मन हंसी । नाम लव कुमार और रचना हास्य व्यंग की ? वाह , क्या कहने ! वह मन ही मन मुस्कुराई । मन ने कहा देखें जनाब वाकई हंसाते हैं या ऐंवेई हैं ? लव कुमार नाम उसे पिंच कर गया था । चलो देखते हैं कि 'लव' के पिटारे में कितना 'लव' है ?


उसने लव कुमार की रचना "थोड़ा हंस लें" को  पढ़ना शुरू किया । यह एक हास्य-व्यंग्य था । पात्रों के नाम ही बड़े अद्भुत रखे गये  थे । गड़बड़ कुमार , दुष्ट सिंह , मासूम चंद , धूर्त मल , चतराराम , पापी लाल , कुलच्छनी देवी , मटक मल्लो और ऐसे ही कुछ दूसरे नगम और थे । उस रचना को  पढ़कर हंसते हंसते लोट पोट हो गई थी आशा । उसकी हंसी इतनी तेज थी कि दूसरे कमरे में बैठी नव्या दौड़कर आई कि आज मौसी को क्या हो गया है ? कहीं उसे फिर से "दौरा" तो नहीं पड़ गया है ? ऐसे तो वह पिछले दस वर्षों में कभघ नहीं हंसी थी ? वह डर और आशंका से आशा को देख रही थी ।

अचानक आशा की नजर नव्या के फक्क से उड़े चेहरे पर पड़ी तो वह सहम गई । 


"ये क्या चेहरा बना रखा है , भूतनी " ? वह नव्या को प्रेम से भूतनी ही कहती थी । 


नव्या ने जब आशा के चेहरे पर मुस्कान देखी तो उसे बहुत सुकून मिला । 


"मौसी , आप इतने जोर से हंस रहे थे कि ..." 


"कि .. क्या ? बोल कि पागलों की तरह हंस रहे थे ! बोल , बोल न " ? आशा उसी तरह खिलखिलाते हुए बोली 


"आप ठीक तो हैं न , मौसी " ? थोड़े डर और थोड़े विस्मय से नव्या ने पूछा । 


"तुझे क्या लगता है भूतनी कि हम सठिया गए हैं? या पगला गए हैं " ? आशा अपनी हंसी रोक नहीं पा रही थी ।


अब नव्या को यकीन हो गया था कि डरने जैसी कोई बात नहीं है । आशा मौसी नॉर्मल हैं और आज बहुत खुश हैं । वह इस खुशी का राज जानना चाहती थी । इसलिए वह भी मुस्कुराते हुए आशा के पास आकर बैठ गई और उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लेकर बोली "आज बरसों बाद आपको इतना खुश और हंसते हुए देखा है मौसी ! सच में आज मैं कितनी खुश हूँ कि मैं बता नहीं सकती हूं । काश आप मेरी खुशी का अंदाजा लगा सकती मौसी । आज का दिन मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं भूल सकती हूं । आप ऐसे ही खिलखिलाती, हंसती हुई बहुत अच्छी लगती हो मौसी । ऐसे ही हंसती रहा करो ना । पर ये तो बताओ कि ऐसी कौन सी बात थी जिस पर इतना हंस रही थी । हमें भी तो पता चले और हमें भी हंसने का थोड़ा सा मौका मिल जाये" । 


"अरे, एक हास्य-व्यंग्य पढ़ रही थी । बहुत मजेदार है । उसे पढ़कर ही हंसी आ रही थी । हंसी आ नहीं रही थी बल्कि हंसी रुक ही नहीं रही थी । तू भी पढ़ ले , तेरा भी यही हाल होगा " आशा ने हंसते हुए कहा । फिर आशा नव्या को पढ़कर सुनाने लगी । अब दोनों जनी मिलकर खूब ठहाके लगा कर हंसने लगीं । नव्या की दोनों लड़कियां भी इतनी तेज हंसी सुनकर वहां पर आ गई और दोनों को हंसते हुए बड़े आश्चर्य से देखने लगीं । दोनों लड़कियों ने उन्हें कभी इस तरह हंसते हुए नहीं देखा था पहले । उन दोनों लड़कियों को इस तरह से देखकर बड़ी मुश्किल से दोनों की हंसी पर ब्रेक लगे । 


आशा को लव कुमार की वह रचना इतनी पसंद आई कि वह उनकी अन्य रचना ढूंढने लगी । उसे जल्दी से मिल भी गई थी । वह एक कविता थी । श्रंगार रस से सराबोर । ऊपर से लेकर नीचे तक हर शब्द प्रेम रस में भीगा हुआ था । लव कुमार ने जैसे सारा 'लव' उस कविता में उडेल दिया हो ।  वह उसे कई बार पढ़ गई । वह कविता उसके दिल को छू गयी थी । सामान्यतः वह किसी रचना पर टिप्पणी करती नहीं थी लेकिन इस कविता पर टिप्पणी करने से वह अपने आपको रोक नहीं पाई । उसने टिप्पणी करते हुए लिखा "बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई" । 


फिर वह वापस उस हास्य-व्यंग्य पर आई और वहां पर उसने टिप्पणी में लिखा "आपने इस हास्यव्यंग्य से इतना हंसाया है कि हंसते हंसते पेट बुरी तरह से दुखने लगा है " । 


उसके बाद वह और नव्या बाजार चली गई आटा, दाल, चावल , सब्जी और फल वगैरह लेने के लिए। जब वापस आईं तो आशा ने फिर "साहित्यिक एप" खोल लिया । नोटिफिकेशन में उसकी दोनों टिप्पणियों पर लव कुमार के जवाब के बारे में सूचना थी । 


उसे कौतूहल हुआ कि लेखक महोदय ने उसकी टिप्पणियों पर क्या जवाब दिया है ? 

वह पहले कविता पर गई । लव कुमार का जवाब था "धन्यवाद" । फिर वह हास्य-व्यंग्य पर गर्ई । वहां पर उनका जवाब था "इस महामारी के समय में किसी के होंठों पर‌ मुस्कन देना बहुत कठिन काम है । अगर आप इसे पढ़कर हंसी हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो गया हूं । इतनी सुंदर टिप्पणी करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया" । 


उसने इस टिप्पणी को न जाने कितनी बार पढ़ा होगा , उसे खुद याद नहीं है । बस , उसका मन हुआ कि वह इसे पढ़े ही जाए , पढ़े ही जाए । 


उसने वह हास्य-व्यंग्य फिर से कई बार पढ़ा । और हर बार पढ़कर अपनी टिप्पणी पढ़ी और उसमें लव कुमार का जवाब भी पढ़ा । उसका मन कर रहा था कि इस पर कुछ जवाब दे । मगर सोचने लगी कि पता नहीं  लव कुमार क्या सोचेंगे ? उसकी आंखों में नींद नहीं आ रही थी। मन दुविधा में था कि कुछ लिखें या ना लिखें ? आखिर में उसने इतना ही लिखा "जितनी बेहतरीन रचना , उतना ही बेहतरीन जवाब" ‌‌। इतना लिखने के पश्चात उसे कुछ सुकून सा मिला था ।  अब दिमाग स्थिर हो गया था उसका । इसके बाद कब नींद आ गई उसे , पता ही नहीं लगा । 


क्रमशः 


शेष अगले अंक में 


हर


 


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4 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:04 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:26 PM

बहुत अच्छा क्रियेटिव लिखा सर

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Shalu

07-Jan-2022 02:04 PM

Bahut badiya

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